आत्मीय रिश्तों की संगत में इत्मीनान होता है, कुछ अपने को फिर से पा लेना होता है, ज़रूरी नहीं कि मतभेद न हो, समझ में आयें सब कुछ ठीक-ठीक, परन्तु न समझ सकने की कसक या समझ लेने की कोशिश का भी अंत नहीं होता.
2.
अच्छा, मान लो कि हमने इसको खो दिया, फिर क्या? हमें इसे फिर से पा लेना चाहिए | अब आप इसको दुबारा कैसे पाएंगे? अपनी दृष्टि को विशाल करके, और जो भी आपके आस पास हैं उनसे आत्मीयता बना के |
3.
मुसाफिर है मन सालों-साल सपने में पहाड़ 2010 पहाड़ डायरी-02 आत्मीय रिश्तों की संगत में इत्मीनान होता है, कुछ अपने को फिर से पा लेना होता है, ज़रूरी नहीं कि मतभेद न हो, समझ में आयें सब कुछ ठीक-ठीक, परन्तु न समझ सकने की कसक या समझ लेने की कोशिश का भी अंत नहीं होता.